शिव भक्तों के लिए सावन का महीना अत्यंत पवित्र होता है। इस दौरान भक्त शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं और व्रत रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस महीने भगवान शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। इसलिए, लोग इस दौरान पूरे भक्ति भाव से पूजा और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। – Sawan Somvar
सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। रुद्राभिषेक के माध्यम से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और वे अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
यदि सावन के महीने में रुद्राभिषेक किया जाए तो जीवन में खुशहाली बनी रहती है। सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और इस दौरान की गई पूजा विशेष लाभकारी होती है। रुद्राभिषेक से घर की सभी परेशानियां दूर होती हैं। यदि आपके घर में कोई भी बाधा है या करियर से जुड़ी समस्याएं हैं, तो वे समाप्त हो जाती हैं। संतान की सेहत को लेकर यदि कोई चिंता है, तो यह पूजा अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।
सावन के महीने में रुद्राभिषेक का शुभ मुहूर्त और शुभ दिन:
हालांकि सावन में रुद्राभिषेक के लिए कोई भी दिन शुभ हो सकता है, लेकिन विशेष रूप से सावन के सोमवार, सावन की शिवरात्रि, और नागपंचमी का दिन विशेष महत्व रखते हैं। इस साल रुद्राभिषेक के लिए निम्नलिखित दिन विशेष शुभ माने गए हैं:
- सावन का पहला सोमवार: 22 जुलाई
- सावन का दूसरा सोमवार: 29 जुलाई
- सावन का तीसरा सोमवार: 5 अगस्त
- सावन का चौथा सोमवार: 12 अगस्त
- सावन का पांचवां सोमवार: 19 अगस्त
- सावन शिवरात्रि: 2 अगस्त
- नागपंचमी: 9 अगस्त nagpanchami
सावन में रुद्राभिषेक की विधि:
जिस दिन रुद्राभिषेक का आयोजन कर रहे हों, उस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
- पूजा के लिए तैयार होने से पहले स्वच्छता का ध्यान रखें।
- स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें। पवित्र मन और शरीर से पूजा करें।
- पूजा के लिए एक पवित्र स्थान चुनें, उसे अच्छी तरह से साफ करें, और वहां एक आसन बिछाएं। उस पर भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग स्थापित करें। पूजा स्थल को फूलों से सजाएं और रुद्राभिषेक पूजा आरंभ करें।
- यदि आप घर में आयोजन कर रहे हैं तो पंडित को बुलाएं और उनके निर्देशों का पालन करते हुए पूजा शुरू करें।
इस प्रकार सावन के महीने में रुद्राभिषेक कर आप भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकते हैं। सावन का महीना शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र होता है और इस दौरान भगवान शिव की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। रुद्राभिषेक की पूजा न केवल मानसिक शांति देती है बल्कि जीवन की सभी परेशानियों का समाधान भी करती है।
इसलिए, यदि आप चाहते हैं कि आपके जीवन में खुशहाली और समृद्धि बनी रहे, तो सावन के महीने में रुद्राभिषेक अवश्य करें। भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का यह उत्तम समय होता है और इस पूजा के माध्यम से आप अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकते हैं। सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और इस दौरान की गई पूजा विशेष लाभकारी होती है।
रुद्राभिषेक की पूजा न केवल मानसिक शांति देती है बल्कि जीवन की सभी परेशानियों का समाधान भी करती है। इसलिए, इस सावन में भगवान शिव की पूजा करें और रुद्राभिषेक के माध्यम से उनकी कृपा प्राप्त करें।
सोमवार व्रत कथा
एक अमीर साहूकार के पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी। उसके पास सभी सुख-सुविधाएं थीं, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी, जिससे वह बहुत दुखी रहता था। संतान प्राप्ति की इच्छा से वह हर सोमवार को भगवान चंद्रदेव और शिवजी की पूजा करता और व्रत रखता था। उसकी इस भक्ति से प्रभावित होकर माँ पार्वती ने भगवान शिव से कहा, “हे नाथ, यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजा भक्तिभाव से करता है। कृपया इसकी मनोकामना पूरी करें।”
पार्वती जी की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने कहा, “हे पार्वती, यह संसार कर्मक्षेत्र है। यहाँ हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है।” परन्तु माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया, परन्तु यह भी कहा कि उसका पुत्र केवल बारह वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
साहूकार ने यह बातें सुन लीं, लेकिन वह पूर्ववत् श्रद्धा और भक्ति से भगवान शिव की पूजा करता रहा। समय बीतने पर साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और दस महीने बाद उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। साहूकार ने इस प्रसंग को किसी से साझा नहीं किया और बालक के बारह वर्ष की आयु होने की प्रतीक्षा करता रहा।
जब बालक ग्यारह वर्ष का हो गया, तो साहूकार की पत्नी ने उसके विवाह की बात की। साहूकार ने उसे काशी पढ़ने भेजने की योजना बनाई और अपने साले से कहा कि वह बालक को काशी ले जाकर शिक्षा दिलाए। रास्ते में वे ब्राह्मणों को भोजन कराते और दान देते हुए चल रहे थे। एक शहर में पहुंचकर उन्होंने देखा कि वहाँ एक राजा की पुत्री का विवाह हो रहा था। वहाँ के राजा ने साहूकार के सुंदर पुत्र को देखकर उससे विवाह का कार्य सम्पन्न करवाने का निवेदन किया, जिसे साहूकार के पुत्र ने स्वीकार कर लिया। विवाह संपन्न होने पर लड़के ने चुपके से राजकुमारी की चुनरी पर लिख दिया कि उसका विवाह उसके साथ हुआ है, लेकिन उसे काशी भेजा जा रहा है। यह पढ़कर राजकुमारी ने काने राजकुमार के साथ जाने से इनकार कर दिया।
साहूकार का पुत्र और उसका मामा काशी पहुंचे, जहाँ लड़के ने पढ़ाई शुरू की। जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो अचानक बीमार पड़ गया और उसकी मृत्यु हो गई। उसके मामा ने यज्ञ पूरा करने के बाद जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। उसी समय भगवान शिव और माँ पार्वती उधर से गुजर रहे थे। पार्वती जी ने शिवजी से उस दुखी व्यक्ति की मदद करने का आग्रह किया। शिवजी ने बालक को पुनर्जीवित कर दिया।
शिक्षा पूर्ण करने के बाद साहूकार का पुत्र और उसका मामा वापस लौटे। वे उसी शहर पहुंचे जहाँ बालक का विवाह हुआ था। वहाँ राजा ने उसे पहचान लिया और आदर-सत्कार किया। राजा ने अपनी पुत्री को उसके साथ विदा किया और साथ में बहुत-सा धन और दास-दासियों को भी भेजा।
इस प्रकार, साहूकार के पुत्र ने सोमवार व्रत और शिवजी की कृपा से न केवल अपना जीवन वापस पाया, बल्कि सुख-समृद्धि भी प्राप्त की।